नकारात्मक सोच से कैसे बचें? श्री प्रेमानंद जी महाराज ने बताया सनातन उपाय!

नकारात्मक सोच से कैसे बचें? श्री प्रेमानंद जी महाराज ने बताया सनातन उपाय!

श्री प्रेमानंद जी महाराज, जिनकी वाणी और उपदेश आज के युग में भटके हुए हृदयों को शांति और दिशा देने का कार्य कर रहे हैं, उनसे हाल ही में एक प्रश्न किया गया कि “महाराज जी, मुझे बहुत अधिक नकारात्मक विचार और डर सताता है। मन स्थिर नहीं रह पाता, ये स्थिति अब खतरनाक हो गई है। अगर यह सोच यूं ही बनी रही तो यह डिप्रेशन में ले जा सकती है और जीवन को संकट में डाल सकती है।”

यह सवाल हर उस इंसान की भावना को दर्शाता है जो आज के तनावपूर्ण वातावरण में मानसिक शांति खो चुका है। और इस पर श्री प्रेमानंद जी महाराज का उत्तर न केवल गहराई से भरा हुआ था, बल्कि समाधान की स्पष्ट दिशा देने वाला भी था।

नकारात्मकता का मूल — पाप का प्रभाव

महाराज जी ने बड़ी सरलता और गहराई से उत्तर दिया कि नकारात्मक विचार पाप से उत्पन्न होते हैं। ये पाप इस जन्म के भी हो सकते हैं और पूर्व जन्मों के भी। जब व्यक्ति के भीतर कोई पाप प्रधान हो जाता है, तब उसके विचारों में निराशा, भय और आत्मविनाश जैसे विचार जन्म लेते हैं।

महाराज जी कहते हैं — “नकारात्मक सोच बहुत खराब चीज़ है। यह पाप से आती है। जब हमारे से कोई पाप बन जाता है, तो वह जब सवार होता है, तो देखो चाहे जितनी विपरीत परिस्थिति हो, अगर सकारात्मक भाव है, तो हम उसमें भी आनंदित रहते हैं।”

इसका तात्पर्य यह है कि नकारात्मकता किसी बाहरी परिस्थिति से नहीं, बल्कि हमारे आंतरिक संस्कारों और पापों से आती है।

यह भी पढे – प्रेमानन्द जी महाराज से कैसे मिले ?

सकारात्मक सोच — ईश्वर की कृपा में विश्वास

श्री महाराज जी हमें यह भी समझाते हैं कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो, हमें यह विश्वास बनाए रखना चाहिए कि यह क्षणिक है। जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता है, वैसे ही दुख और सुख का क्रम चलता रहता है। दुख का आना स्थायी नहीं है, यह भी बीत जाएगा।

उन्होंने कहा — “भगवान की कृपा है। आज आई है परिस्थिति, बदल जाएगी। जैसे दिन नहीं रहा, रात आई; ऐसे रात नहीं रहेगी, दिन आएगा।”

यह दृष्टिकोण हमें जीवन के उतार-चढ़ाव को सहजता से देखने की दृष्टि देता है।

सकारात्मक सोच — ईश्वर की कृपा में विश्वास

नकारात्मकता का समाधान — भजन बल और नाम जप

महाराज जी ने इस मानसिक स्थिति का हल भी स्पष्ट रूप से बताया — नाम जप और भजन बल। उन्होंने कहा कि जितना अधिक हम नाम जप करेंगे, उतनी जल्दी हमारे विचार शुद्ध होंगे। मन में जितनी अधिक नकारात्मकता है, उसे उतना ही भक्ति और भगवान के नाम से काटा जा सकता है।

उन्होंने यह भी कहा — “हमें चाहिए कि नकारात्मक सोच को नष्ट कर दें भजन बल के द्वारा। हम खूब नाम जप करें और अपनी नकारात्मक सोच को छोड़ें।”

भय क्यों करना? सर्वत्र भगवान हैं

महाराज जी ने भय के विषय में भी अद्भुत बातें कहीं। उन्होंने कहा कि मृत्यु तो एक बार ही आएगी, बार-बार नहीं। फिर डर किस बात का? जो होना है, वह होगा। लेकिन उस बीच में अगर हम डर में जीते हैं, तो यह जीवन भी दुखमय हो जाएगा।

“जब जिसको जहां मरना है, आप ना आवे, आप पर ताई तहां ले जाए, वह वहीं जाएगा। वैसे घटना घटेगी, वैसे परिस्थिति बन जाएगी। एक बार मरना है, 100 बार मरना नहीं।”

यह वाक्य न केवल जीवन के डर को समाप्त करता है, बल्कि हमें एक निर्भीक भक्त बनने की प्रेरणा भी देता है।

भगवान और भक्तों के चरित्र — मन को करते हैं पवित्र

अंत में, श्री महाराज जी ने कहा कि भगवान की कथाएं और उनके भक्तों के चरित्र सुनने से हृदय बहुत शीघ्र पवित्र होता है। जैसे-जैसे मन इन लीलाओं में रमने लगता है, वैसे-वैसे नकारात्मकता, डर, और शंका स्वतः दूर होने लगते हैं।

“भगवान और भक्तों के चरित्र सुनने से बहुत जल्दी हृदय पवित्र होता है।”

Leave a Comment