निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों को हर साल नई किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सीबीएसई (सीबीएसई) पैटर्न की आड़ में स्कूल प्रशासन अलग-अलग निजी प्रकाशकों की किताबें पढ़ा रहा है, जो न केवल महंगी होती हैं बल्कि हर साल बदली भी जाती हैं। इस वजह से अभिभावकों पर आर्थिक दबाव लगातार बढ़ रहा है।
हर साल नई किताबें, हर बार नया खर्च
निजी स्कूलों में बच्चों को हर क्लास के लिए अलग-अलग प्रकाशनों की किताबें दिलवाई जा रही हैं। पिछले साल जिस पब्लिकेशन की किताबें थीं, इस साल किसी और का चयन कर लिया गया। नतीजा — पुराने बच्चों की किताबें किसी काम की नहीं रहीं और नए बच्चों को पूरी नई किताबें खरीदनी पड़ रही हैं।
सीबीएसई की गाइडलाइन का हो रहा उल्लंघन
सीबीएसई ने पहले ही निर्देश जारी किए हैं कि स्कूलों को एनसीईआरटी की किताबें ही प्राथमिकता में रखनी चाहिए। लेकिन ज्यादातर प्राइवेट स्कूल इन दिशानिर्देशों की अनदेखी करते हुए निजी प्रकाशकों की किताबें थोप रहे हैं, जो एनसीईआरटी की तुलना में कई गुना महंगी होती हैं।
कमीशन के लालच में बच्चों की पढ़ाई से खिलवाड़
सूत्रों के अनुसार, कई प्रकाशन स्कूलों को मोटा कमीशन या अन्य लाभ देते हैं, जिसके चलते स्कूल उन्हीं की किताबें अपनाते हैं। यह एक तरह से ‘बिजनेस मॉडल’ बन गया है, जिसमें शिक्षा से ज्यादा लाभ कमाने की सोच हावी है।
अभिभावकों की पीड़ा, विरोध की तैयारी
कई अभिभावकों ने इस मनमानी पर नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि वे हर साल हज़ारों रुपये किताबों पर खर्च नहीं कर सकते। कुछ संगठनों ने शिक्षा विभाग से शिकायत करने की बात भी कही है और मांग की है कि इस पर नियंत्रण लगाया जाए।
शिक्षाविदों की चेतावनी
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बार-बार किताबें बदलने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। एक समान पाठ्यक्रम से न केवल समझ बेहतर बनती है, बल्कि लंबे समय तक ज्ञान स्थिर रहता है। किताबों का अनावश्यक बदलाव बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को बाधित करता है। जिला शिक्षा पदाधिकारी राघवेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि, मामला संज्ञान में आया है इसकी जांच कराई जाएगी। कहा कि
निजी स्कूलों को चाहिए कि वे शिक्षा को व्यापार न बनाएं और छात्रों के हितों को प्राथमिकता दें।